लोगों की राय

बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 संस्कृत नाटक एवं व्याकरण

बीए सेमेस्टर-3 संस्कृत नाटक एवं व्याकरण

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2652
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 0

बीए सेमेस्टर-3 संस्कृत नाटक एवं व्याकरण

प्रश्न- भट्टनारायण की शैली पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।

अथवा
वेणीसंहार की शैली पर सोदाहरण समीक्षा कीजिए।

उत्तर -

वेणीसंहार की शैली प्रसादगुणपूर्ण है, उसमें ओज और गरिमा है। भानुमती के स्वप्न से खिन्न दुर्योधन अपने को आश्वस्त करता है। अंगिरा का कथन है

"ग्रहाणां चरित स्वप्नोऽनिमित्तान्युपयाचितम्।
फलन्ति काकतालीयं तेभ्यः प्राज्ञा न भिद्यति॥ '

"ग्रहों की गति, स्वप्न, शकुन और मनौती का प्रभाव कभी-कभी सभी को संयोगवश ही दिखाई देता है | अतः बुद्धिमान व्यक्ति उनसे भयभीत नहीं होता। असंगत होने पर भी भानुमती के प्रति उसकी उक्ति में लालित्य है -

"कुरू घनोरू पदानि शनैः शनैः रयि विमुञ्च गति परिवेपिनीम्।
पतसि बाहुलतोपनिबन्धनम् मम निपीड्य गाढमुरःस्थलम्॥'

"हे विशाल जघने ! धीरे-धीरे पैर रखे, अपनी लड़खड़ाती हुई गति को रोको, मेरी भुजलताओं का आश्रय लेकर मेरा गाढ़ आलिंगन करो। परन्तु सुकुमारता की अभिव्यक्ति दुर्योधन से सामान्य नहीं है। जब उसकी माँ उसे शत्रु से सन्धि करके जीवन-रक्षा के लिये प्रेरित करती है तब वह उसकी भर्त्सना करता है -

"मातः ! किमप्यसदृशं विकृतं वचस्ते सुक्षत्रिया क्व भवती क्व च दीनतै वाः।
निर्वत्सले सुतशतस्य विपत्तिमेतां त्वां नानुचिन्तयसि रक्षसि मामयोग्यम्॥'

"माँ तुम्हारी यह बात सर्वथा आयोग्य और भद्दी है। कहाँ उच्च क्षत्रियवंश की पुत्री और कहाँ यह कातरता? तुम वात्सल्य से हीन हो, क्योंकि तुम अपने सौ पुत्रों की इस विपत्ति को भूल रही हो और मुझ अयोग्य को बचाना चाहती हो।' न्यायतः अप्रसन्न अश्वत्थामा के प्रति धृतराष्ट्र की आज्ञापालक संजय द्वारा की गई अभ्यर्थना हृदयस्पर्शी है -

"स्मरति न भवान्पीतं स्तन्यं चिराय सहामुना,
ममं च मलिनं क्षौमं बाल्ये त्वदङ्गविवर्तनैः।
अनुजनिधस्फीताच्छोकादतिप्रणयाच्च
तद्विकृतवचने मास्मिन् क्रोधश्चिरं क्रियतां त्वया॥'

"क्या आपको स्मरण नहीं है कि आपने बहुत समय तक इसके साथ स्तन्यपान किया है और बचपन में लौट लौटकर मेरे रेशमी वस्त्रों को मैला किया है? अपने छोटे भाइयों की मृत्यु से उत्पन्न शोक अथवा प्रेमाधिक्य के कारण अनुचित बात करने वाले इस दुर्योधन पर क्रोध मत कीजिए।"

दूसरी ओर, भवभूति के अनेक दोष भट्टनारायण में पाये गये हैं। मुख्य रूप से प्राकृत तथा संस्कृत दोनों के गद्य में दीर्घसमासप्रियता और वैसा ही बोझिल अनुप्रभाव, उदाहरणार्थ, जब द्रौपदी भीम को युद्ध में सावधान रहने के लिए सचेत करती है तब वे युद्ध का वर्णन करते हैं

"अन्योन्यास्फालभिन्नद्विपरूधिरवसामांसमस्तिष्कपङ्के
मग्नानां स्यन्दनानामुपरिकृतपदन्यासविक्रान्तपतौ।
स्फीतासृक्पानगोष्ठीरसदशिवशिवातूर्यनृत्यत्क बंधे
सङ्ग्रामैकार्णवान्तः पयसि विचरितुं पण्डिताः पाण्डुपुत्राः ||

तथापि भट्टनारायण में विशाखदत्त की भाँति दीप्ति और ओज की विशेषता पायी जाती है। अधिकांश रौद्र-संवादों में कठोरता तथा उग्रता है परन्तु साथ ही यथार्थता और सजीवता है। राम विषयक नाटकों में राम परशुराम-प्रसंग - के ऊबा देने वाले और वर्णनों को बोझिल बना देने वाले वाग्युद्धों में यह बात नहीं पायी जाती है। उद्धतता में दुर्योधन भीम के पीछे नहीं है, हाँ वह उग्र वायु-पुत्र की अपेक्षा कदाचित अधिक बुद्धिमान है -

कृष्टा केशेषु भार्या तव तव च पशोस्तस्य राज्ञस्तयोर्वा
प्रत्यक्षं भूपतीनां मम भुवनपतेराज्ञया द्यूतदासी।
अस्मिन्वैरानुबन्धे वद किमपकृतं तैर्हता ये नरेन्द्रा
बाह्वोर्वीर्यातिभारद्रविणगुरूमदं मामजित्वैव दर्पः॥ '

भाषा के उग्र होने पर भी विपन्न धृतराष्ट्र के प्रति भीम की असाधारण निष्ठुरता से पूर्ण उक्ति किसी सीमा तक क्षम्य है। द्रौपदी के लज्जाजनक अपमान का स्मरण दिलाने के कारण वह प्रायः न्यायोचित है -

" निहताशेष कौरव्यः क्षीवोदुशासना सृजा।
भङ्क्ता दुर्योधनस्योर्वोर्भीमीऽय शिरसा नतः॥ '

ये तथा अन्य लेखांश काव्यशास्त्रियों द्वारा उद्धृत है। वेणीसंहार में शास्त्रीय सिद्धान्तों के उदाहरणों की अनंत राशि उपलब्ध है। उन सिद्धान्तों नेलेखक की रचना पर असंदिग्ध रूप से गम्भीर प्रभाव डाला था। परन्तु काव्यशास्त्रियों न आँख मूंदकर उनकी प्रशस्ति नहीं की है। भानुमती विषयक शृङ्गारिक दृश्य निश्चित रूप से असंगत माना गया है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. प्रश्न- भास का काल निर्धारण कीजिये।
  2. प्रश्न- भास की नाट्य कला पर प्रकाश डालिए।
  3. प्रश्न- भास की नाट्य कृतियों का उल्लेख कीजिये।
  4. प्रश्न- अश्वघोष के जीवन परिचय का वर्णन कीजिए।
  5. प्रश्न- अश्वघोष के व्यक्तित्व एवं शास्त्रीय ज्ञान की विवेचना कीजिए।
  6. प्रश्न- महाकवि अश्वघोष की कृतियों का उल्लेख कीजिए।
  7. प्रश्न- महाकवि अश्वघोष के काव्य की काव्यगत विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  8. प्रश्न- महाकवि भवभूति का परिचय लिखिए।
  9. प्रश्न- महाकवि भवभूति की नाट्य कला की समीक्षा कीजिए।
  10. प्रश्न- "कारुण्यं भवभूतिरेव तनुते" इस कथन की विस्तृत विवेचना कीजिए।
  11. प्रश्न- महाकवि भट्ट नारायण का परिचय देकर वेणी संहार नाटक की समीक्षा कीजिए।
  12. प्रश्न- भट्टनारायण की नाट्यशास्त्रीय समीक्षा कीजिए।
  13. प्रश्न- भट्टनारायण की शैली पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  14. प्रश्न- महाकवि विशाखदत्त के जीवन काल की विस्तृत समीक्षा कीजिए।
  15. प्रश्न- महाकवि भास के नाटकों के नाम बताइए।
  16. प्रश्न- भास को अग्नि का मित्र क्यों कहते हैं?
  17. प्रश्न- 'भासो हास:' इस कथन का क्या तात्पर्य है?
  18. प्रश्न- भास संस्कृत में प्रथम एकांकी नाटक लेखक हैं?
  19. प्रश्न- क्या भास ने 'पताका-स्थानक' का सुन्दर प्रयोग किया है?
  20. प्रश्न- भास के द्वारा रचित नाटकों में, रचनाकार के रूप में क्या मतभेद है?
  21. प्रश्न- महाकवि अश्वघोष के चित्रण में पुण्य का निरूपण कीजिए।
  22. प्रश्न- अश्वघोष की अलंकार योजना पर प्रकाश डालिए।
  23. प्रश्न- अश्वघोष के स्थितिकाल की विवेचना कीजिए।
  24. प्रश्न- अश्वघोष महावैयाकरण थे - उनके काव्य के आधार पर सिद्ध कीजिए।
  25. प्रश्न- 'अश्वघोष की रचनाओं में काव्य और दर्शन का समन्वय है' इस कथन की समीक्षा कीजिए।
  26. प्रश्न- 'कारुण्यं भवभूतिरेव तनुते' इस कथन का क्या तात्पर्य है?
  27. प्रश्न- भवभूति की रचनाओं के नाम बताइए।
  28. प्रश्न- भवभूति का सबसे प्रिय छन्द कौन-सा है?
  29. प्रश्न- उत्तररामचरित के रचयिता का नाम भवभूति क्यों पड़ा?
  30. प्रश्न- 'उत्तरेरामचरिते भवभूतिर्विशिष्यते' इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
  31. प्रश्न- महाकवि भवभूति के प्रकृति-चित्रण पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  32. प्रश्न- वेणीसंहार नाटक के रचयिता कौन हैं?
  33. प्रश्न- भट्टनारायण कृत वेणीसंहार नाटक का प्रमुख रस कौन-सा है?
  34. प्रश्न- क्या अभिनय की दृष्टि से वेणीसंहार सफल नाटक है?
  35. प्रश्न- भट्टनारायण की जाति एवं पाण्डित्य पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  36. प्रश्न- भट्टनारायण एवं वेणीसंहार का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  37. प्रश्न- महाकवि विशाखदत्त का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  38. प्रश्न- 'मुद्राराक्षस' नाटक का रचयिता कौन है?
  39. प्रश्न- विखाखदत्त के नाटक का नाम 'मुद्राराक्षस' क्यों पड़ा?
  40. प्रश्न- 'मुद्राराक्षस' नाटक का नायक कौन है?
  41. प्रश्न- 'मुद्राराक्षस' नाटकीय विधान की दृष्टि से सफल है या नहीं?
  42. प्रश्न- मुद्राराक्षस में कुल कितने अंक हैं?
  43. प्रश्न- निम्नलिखित पद्यों का सप्रसंग हिन्दी अनुवाद कीजिए तथा टिप्पणी लिखिए -
  44. प्रश्न- निम्नलिखित श्लोकों की सप्रसंग - संस्कृत व्याख्या कीजिए -
  45. प्रश्न- निम्नलिखित सूक्तियों की व्याख्या कीजिए।
  46. प्रश्न- "वैदर्भी कालिदास की रसपेशलता का प्राण है।' इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
  47. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् के नाम का स्पष्टीकरण करते हुए उसकी सार्थकता सिद्ध कीजिए।
  48. प्रश्न- 'उपमा कालिदासस्य की सर्थकता सिद्ध कीजिए।
  49. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् को लक्ष्यकर महाकवि कालिदास की शैली का निरूपण कीजिए।
  50. प्रश्न- महाकवि कालिदास के स्थितिकाल पर प्रकाश डालिए।
  51. प्रश्न- 'अभिज्ञानशाकुन्तलम्' नाटक के नाम की व्युत्पत्ति बतलाइये।
  52. प्रश्न- 'वैदर्भी रीति सन्दर्भे कालिदासो विशिष्यते। इस कथन की दृष्टि से कालिदास के रचना वैशिष्टय पर प्रकाश डालिए।
  53. अध्याय - 3 अभिज्ञानशाकुन्तलम (अंक 3 से 4) अनुवाद तथा टिप्पणी
  54. प्रश्न- निम्नलिखित श्लोकों की सप्रसंग - संस्कृत व्याख्या कीजिए -
  55. प्रश्न- निम्नलिखित सूक्तियों की व्याख्या कीजिए -
  56. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम्' नाटक के प्रधान नायक का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  57. प्रश्न- शकुन्तला के चरित्र-चित्रण में महाकवि ने अपनी कल्पना शक्ति का सदुपयोग किया है
  58. प्रश्न- प्रियम्वदा और अनसूया के चरित्र की तुलनात्मक समीक्षा कीजिए।
  59. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् में चित्रित विदूषक का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  60. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् की मूलकथा वस्तु के स्रोत पर प्रकाश डालते हुए उसमें कवि के द्वारा किये गये परिवर्तनों की समीक्षा कीजिए।
  61. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् के प्रधान रस की सोदाहरण मीमांसा कीजिए।
  62. प्रश्न- महाकवि कालिदास के प्रकृति चित्रण की समीक्षा शाकुन्तलम् के आलोक में कीजिए।
  63. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् के चतुर्थ अंक की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  64. प्रश्न- शकुन्तला के सौन्दर्य का निरूपण कीजिए।
  65. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् का कथासार लिखिए।
  66. प्रश्न- 'काव्येषु नाटकं रम्यं तत्र रम्या शकुन्तला' इस उक्ति के अनुसार 'अभिज्ञानशाकुन्तलम्' की रम्यता पर सोदाहरण प्रकाश डालिए।
  67. अध्याय - 4 स्वप्नवासवदत्तम् (प्रथम अंक) अनुवाद एवं व्याख्या भाग
  68. प्रश्न- भाषा का काल निर्धारण कीजिये।
  69. प्रश्न- नाटक किसे कहते हैं? विस्तारपूर्वक बताइये।
  70. प्रश्न- नाटकों की उत्पत्ति एवं विकास क्रम पर टिप्पणी लिखिये।
  71. प्रश्न- भास की नाट्य कला पर प्रकाश डालिए।
  72. प्रश्न- 'स्वप्नवासवदत्तम्' नाटक की साहित्यिक समीक्षा कीजिए।
  73. प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के आधार पर भास की भाषा शैली का वर्णन कीजिए।
  74. प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के अनुसार प्रकृति का वर्णन कीजिए।
  75. प्रश्न- महाराज उद्यन का चरित्र चित्रण कीजिए।
  76. प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् नाटक की नायिका कौन है?
  77. प्रश्न- राजा उदयन किस कोटि के नायक हैं?
  78. प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के आधार पर पद्मावती की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  79. प्रश्न- भास की नाट्य कृतियों का उल्लेख कीजिये।
  80. प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के प्रथम अंक का सार संक्षेप में लिखिए।
  81. प्रश्न- यौगन्धरायण का वासवदत्ता को उदयन से छिपाने का क्या कारण था? स्पष्ट कीजिए।
  82. प्रश्न- 'काले-काले छिद्यन्ते रुह्यते च' उक्ति की समीक्षा कीजिए।
  83. प्रश्न- "दुःख न्यासस्य रक्षणम्" का क्या तात्पर्य है?
  84. प्रश्न- निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए : -
  85. प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिये (रूपसिद्धि सामान्य परिचय अजन्तप्रकरण) -
  86. प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूपसिद्धि कीजिये।
  87. प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए (अजन्तप्रकरण - स्त्रीलिङ्ग - रमा, सर्वा, मति। नपुंसकलिङ्ग - ज्ञान, वारि।)
  88. प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूपसिद्धि कीजिए।
  89. प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए (हलन्त प्रकरण (लघुसिद्धान्तकौमुदी) - I - पुल्लिंग इदम् राजन्, तद्, अस्मद्, युष्मद्, किम् )।
  90. प्रश्न- निम्नलिखित रूपों की सिद्धि कीजिए -
  91. प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूपसिद्धि कीजिए।
  92. प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए (हलन्तप्रकरण (लघुसिद्धान्तकौमुदी) - II - स्त्रीलिंग - किम्, अप्, इदम्) ।
  93. प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूप सिद्धि कीजिए - (पहले किम् की रूपमाला रखें)

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book