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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-A - समावेशी शिक्षा

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :215
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2700
आईएसबीएन :0

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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-A - समावेशी शिक्षा

प्रश्न- समावेशी कक्षाओं से आपका क्या तात्पर्य है? समावेशी कक्षाओं का नियोजन कैसे किया जाता है?

उत्तर -

समावेशी कक्षा-कक्ष (Inclusive Classroom) - हमारे जीवन में प्रत्येक वह कार्य सफल होता है, जिसे हम नियोजित रूप से करते हैं। चाहे वह कार्य साधारण हो या विशेष। शिक्षा हमारे जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। इसलिए सफल जीवन के लिए शिक्षा से जुड़े सभी पक्षों का नियोजन अनिवार्य हो जाता है।

होमनेस के अनुसार - "कक्षा-कक्ष एक ऐसा स्थान है जहां विभिन्न प्रकार की गतिविधियाँ चलती रहती हैं, पारस्परिक क्रियाएँ होती हैं, सामाजिक परिस्थितियों का बोध कराया जाता है, पारस्परिक निरंतरता स्थापित की जाती है और नियम बनाए जाते हैं।"

डीबी के अनुसार - "कक्षा-कक्ष में ऐसी परिस्थितियाँ होती हैं, जो छात्रों की गुणात्मक गतिविधियों को आगे बढ़ाती हैं, बाधा डालती हैं, प्रेरित करती हैं अथवा रोक लगाती हैं।" इस प्रकार कक्षा-कक्ष वही स्थान है जहां छात्र विद्यालय परिवेश में सीखते हैं, विभिन्न गतिविधियाँ करते हैं।

इसमें कक्षा-कक्ष अपने संगठन तथा प्रणाली में सामान्य छात्रों के कक्षा-कक्ष से भिन्न होता है। इसलिए समावेशी शिक्षा के कक्षा-कक्ष का नियोजन एवं प्रबंधन काफी विशिष्ट एवं चुनौतीपूर्ण कार्य है। शिक्षण अधिगम की प्रक्रिया सुचारू रूप से चले, इसके लिए समावेशी कक्षा-कक्ष को सही प्रबंधन होना आवश्यक है।

समावेशी कक्षाओं का नियोजन (Planning of Inclusive Classroom) - समावेशी कक्षाओं का नियोजन करना सरल कार्य नहीं है, इसमें निम्न तथ्यों का समावेश किया जाता है:

  1. कक्षा का आकार - समावेशी कक्षा का आकार छात्रों के अनुपात में होना चाहिए। कक्षा में बैठने की व्यवस्था इस प्रकार होनी चाहिए कि छात्रों के बीच पर्याप्त दूरी रहे और उन्हें स्पष्ट रूप से बोर्ड देखने में कोई कठिनाई न हो। साथ ही कक्षा में हवा तथा रोशनी का पर्याप्त प्रबंध हो। असमर्थ छात्रों व सामान्य छात्रों के बैठने की व्यवस्था साथ-साथ की जाए। यदि कोई गम्भीर असमर्थता से युक्त छात्र है, तो उसके बैठने की व्यवस्था अलग भी हो सकती है।

  2. छात्र-शिक्षक अनुपात - कक्षा में छात्र शिक्षक अनुपात 1:20 का होना चाहिए साथ ही, आवश्यकता पड़ने पर सहायक शिक्षकों को भी बुलाया जा सकता है।

  3. उचित उपकरणों की उपलब्धता - समावेशी कक्षा-कक्ष में असमर्थ छात्रों के उपयोग में आने वाले उपकरणों की भी उपलब्धता होनी चाहिए। यदि कक्षा में कोई श्रवण बाधित छात्र है, तो उसके लिए ऑडियोमेट्रिक तथा दृष्टि बाधित छात्र के लिए ब्रेल साधनों का प्रयोग होना चाहिए। आवश्यकता पड़ने पर विशेषज्ञ बाधित वाणी सुधारक, फिजियोथैरेपिस्ट व अन्य विशेषताओं की सेवाओं को भी लिया जा सकता है।

  4. पाठ्यक्रम - समावेशी कक्षा का पाठ्यक्रम उद्देश्यों पर आधारित होने के साथ छात्र की आवश्यकताओं को पूर्ण करने में भी होना चाहिए। आवश्यकता नहीं है कि एक समावेशी कक्षा-कक्ष में सभी छात्र एक ही पाठ्यक्रम व पाठ्यवस्तु पढ़ें। असमर्थ बालकों के लिए लचीले पाठ्यक्रम की भी व्यवस्था होनी चाहिए। कक्षा के प्रतिभाशाली छात्र को अतिरिक्त प्रश्न देकर लाभान्वित किया जा सकता है। असमर्थ बालक को सभी भावाओं को न पढ़ाकर उसकी मातृभाषा ही पढ़ाई जा सकती है।

  5. मूल्यांकन - समावेशी कक्षा का मूल्यांकन भी एक समान नहीं होगा। असमर्थ छात्रों के मूल्यांकन में कुछ छूटें दी जा सकती हैं, लेकिन यह आवश्यक से अधिक न हो। साथ ही, छात्रों का निरंतर मूल्यांकन भी किया जाए, जिसमें छात्रों को पाठ्य सहगामी गतिविधियों का भी समावेश हो। समावेशी कक्षा में अत्यधिक प्रतिस्पर्धात्मक वातावरण नहीं होना चाहिए, क्योंकि इससे असमर्थ छात्रों के मनोबल में गिरावट आती है।

  6. अनुशासन - समावेशी कक्षा की एक समस्या अनुशासन की भी है। स्वस्थ व सक्षम छात्र, असमर्थ छात्रों को परेशान कर सकते हैं या उनके प्रति असंवेदनशील हो सकते हैं। ऐसे में कक्षा अनुशासन चुनौतीपूर्ण हो सकता है। अध्यापक को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वह कक्षा का अनुशासन बनाए रखे तथा असमर्थ छात्रों के लिए वातावरण सुखदायक व गरिमापूर्ण होना चाहिए। अन्यथा वह कक्षा में आने से बचेंगे तथा बाहिकक्षीय नीति अपनाएंगे। 

  7. सहयोगपूर्ण वातावरण - "कक्षा का वातावरण सीखने व सिखाने पर अत्यधिक प्रभाव डालता है। यदि कक्षा का वातावरण सकारात्मक व सहयोगपूर्ण है, तो सीखना उत्साहजनक होगा अन्यथा एक बोझ की तरह होगा।" इसलिए कक्षा-अध्यापक का दायित्व है कि वह कक्षा को बौद्धिक व नैतिक दृष्टिकोण से सहयोगी बनाए। यदि कक्षा में असमर्थ छात्रों के प्रति अतिसंवेदनशील व्यवहार हो तो ठीक नहीं, इससे वे हीन भावना में ग्रसित हो सकते हैं।

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