बी एड - एम एड >> बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-A - समावेशी शिक्षा बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-A - समावेशी शिक्षासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-A - समावेशी शिक्षा
प्रश्न- पूर्व पहचान में अध्यापक के योगदान पर प्रकाश डालिए।
उत्तर -
पूर्व पहचान में अध्यापक का योगदान - विशेष बालकों की पूर्व पहचान में अध्यापक का महत्वपूर्ण योगदान होता है। प्रत्येक विद्यालय में शिक्षा प्राप्त करने के लिये सामान्य बालकों के अलावा कुछ विशेष बालक भी आते हैं, जिनमें अपनी कुछ शारीरिक, मानसिक विशेषताएं होती हैं। इनमें से कुछ प्रतिभाशाली, कुछ मंदबुद्धि, श्रवण बाधित, दृष्टि बाधित, अस्थि बाधित होते हैं। इन बालकों की पूर्व पहचान करने में अध्यापक का विशेष योगदान होता है क्योंकि अध्यापक ही बच्चों के करीब से जान सकता है। उनके गुण, अवगुण का पता लग सकता है। शिक्षक बच्चों को सिर्फ पढ़ाता ही नहीं है बल्कि बच्चे में उपस्थित गुण-अवगुणों को पहचानने में अपनी अहम भूमिका निभाता है।
बच्चे ईश्वर की देन होते हैं। किस बच्चे में कौन से गुण, अवगुण होंगे और ये गुण, अवगुण कब, कैसे प्रस्फुटित होंगे, इन सबका पता लगाना बड़ा कठिन कार्य होता है। यही कारण है कि अध्यापक का सामाजिक दायित्व बन जाता है कि इस प्रतिभा की पहचान कर उसे विकसित करे और ज्यादा से ज्यादा गुणों को विकसित करके व्यक्ति और समाज का विकास कर सकता है। अक्सर देखा जाता है कि ज्यादातर प्रतिभा समय पूर्व उजागर कर दिए जाते हैं और न तो उसे सही पहचान मिल पाती है और न ही कोई उनका मूल्यांकन कर पाता है। जब किसी बच्चे की प्रतिभा को पहचान नहीं मिल पाती है तो यह घटना में हीनभावना उत्पन्न कर देता है और बच्चे का विकास अवरुद्ध हो जाता है। इसलिए अध्यापक का कर्तव्य है कि बच्चे की पूर्व पहचान कर ले। अध्यापक पूर्व पहचान करने के लिए कुछ शैक्षिक, मनोवैज्ञानिक, प्रयोगात्मक, अवलोकन विधियों का प्रयोग कर बच्चों को पहचानने में मदद ले सकता है। पूर्व पहचान हो जाने से बच्चों के गुणों को विकसित करने में मदद मिलती है। विशेष बालकों की पहचान हो जाने से बालकों को उनकी योग्यता, रुचि, बौद्धिक क्षमता के अनुसार विशिष्ट शिक्षा की व्यवस्था की जा सकती है।
निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि बच्चे की पूर्व पहचान में शिक्षक का योगदान अत्यन्त महत्वपूर्ण है।
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