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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-A - समावेशी शिक्षा

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :215
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2700
आईएसबीएन :0

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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-A - समावेशी शिक्षा

प्रश्न- दृष्टि-दोष वाले बालकों का क्या अर्थ है? दृष्टिदोष के मुख्य प्रकारों तथा दृष्टिदोष से ग्रस्त बालकों की पहचान तथा विशेष आवश्यकताओं का विवेचन कीजिए।

अथवा
दृष्टि-दोष के मुख्य प्रकारों, पहचान तथा विशेष आवश्यकताओं पर प्रकाश डालिए।

उत्तर -

दृष्टि-दोष वाले बच्चे आसानी से देख नहीं पाते हैं। ये बच्चे दूर की वस्तुओं और निकट की वस्तुओं को देखने में कठिनाई महसूस करते हैं। इस दृष्टि से दृष्टि-दोष निम्न प्रकार के होते हैं-

(a) निकट दृष्टि-दोष- इस दोष वाले बच्चे दूर की वस्तुओं को देखने में कठिनाई अनुभव करते हैं। इसका मुख्य कारण खान-पान की खराबी होती है। इसके अतिरिक्त इस दोष के कारणों में असंतुलित भोजन, परिवार तथा कमरे का अनुचित वातावरण, अधिक कार्य करना, कम रोशनी में पढ़ना या टेलीविजन को बहुत समीप से देखना आदि शामिल है।

(b) दूर दृष्टि-दोष- इस दोष के कारण बच्चे नजदीक की वस्तुएँ कठिनाई से देख पाते हैं। लेकिन इन्हें दूर की वस्तुएँ स्पष्ट रूप से दिखाई देती हैं। यह दोष जन्मजात होता है।

(c) मिश्रित दृष्टि-दोष- इस दृष्टि-दोष में निकट और दूर के दोष शामिल होते हैं। इसके मुख्य कारण जन्मजात दोष होते हैं। यह बच्चे आँखों को खूब मलते हैं। इसके परिणामस्वरूप आँखों में पानी आ जाता है।

(d) बहुगुणता- इस दोष के अंतर्गत बच्चे एक आँख से नाक की ओर देखते हैं। आँखों को नियंत्रित करने वाली मांस पेशियों में असंतुलन आ जाने से इस रोग की उत्पत्ति होती है। किसी मानसिक पर दबाव आने से यह दोष आ जाता है।

(e) अंधापन- अंधापन के अंतर्गत बच्चों की आँखों की रोशनी कम या समाप्त हो जाती है। ऐसे बालकों में कई प्रकार की हीन भावनाएँ आ जाती हैं। ऐसे बालकों में या तो पूर्ण अधमय होता है अथवा आंशिक रूप से बालक अंधे होते हैं। ऐसे बच्चों के लिए शिक्षा की उचित व्यवस्था होनी चाहिए।

(f) रोहे - इस दोष के अंतर्गत पलक़ों में दाने निकल आते हैं। इससे रोशनी के कारण चकाचौंध का आभास होता है।

(g) आँखों का दुखना- यह रोग फैलने वाला होता है। आँखें लाल हो जाती हैं तथा दुखने लगती हैं तथा आँखों से गन्दा पानी निकलने लगता है।

(h) रतौंधी- यह रोग विटामिन पर कमी के कारण होता है। रोशनी की कमी के कारण बच्चे अधमय महसूस करने लगते हैं।

(i) बिलनी- आँखों की पलक़ों के किनारों पर जो सूजन आ जाती है उसे बिलनी कहते हैं। यह रोग प्रायः आँखों में गन्दगी पड़ने या आँख पर दबाव या आँख पड़ने से होता है।

पहचान- दृष्टि-दोष वाले बालकों की पहचान निम्नलिखित तरीकों से की जा सकती है -

1. डॉक्टरी जाँच- समय-समय पर विद्यालयों में बच्चों की जो डॉक्टरी जाँच की जाती है, उससे यह पता लगाया जा सकता है कि कौन-कौन से बालक नेत्र दोषयुक्त हैं। यदि उनमें दृष्टि कम है तो कितनी तथा उसे सुधारना संभावित है। विद्यालयों में जाँच द्वारा इस विषय में पता लगने पर उनके अभिभावकों को उन्हें नेत्र चिकित्सकों को दिखाने की सलाह दी जा सकती है। जिससे उनके दृष्टि दोषों का पता लगाया जा सके।

2. अध्यापक द्वारा निरीक्षण- कई बार अध्यापक श्यामपट्ट पर जो लिखते हैं, बच्चे उसे अपनी उत्तर पुस्तिका में ठीक से उतार नहीं पाते, उसमें अशुद्धियाँ करते हैं। पुस्तक पढ़ते समय बहुत झुककर पढ़ते हैं, या पढ़ते समय उन्हें सिर दर्द होता है तो इसका बहुत प्रयास करना पड़ता है। कई बार उनके नेत्रों में पानी बहता रहता है। एक कुशल अध्यापक ध्यान देकर यह अनुमान कर सकता है कि इन बच्चों में दृष्टि-दोष संभव है और वह बच्चों के अभिभावकों को जाँच तथा उचित जाँच की सलाह दे सकता है।

3. स्वयं बच्चे से पूछताछ करना- यदि अध्यापक को लगे कि बच्चा देखने में कठिनाई अनुभव कर रहा है तो वह इस संबंध में स्वयं बच्चे से पूछताछ कर सकता है।

4. विशेषताओं के आधार पर- दृष्टि-दोष वाले बच्चों की पहचान उनकी विशेषताओं के आधार पर भी की जा सकती है। उनकी कुछ विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. दृष्टि-दोष वाले बच्चों को वस्तुओं को देखने में कठिनाई महसूस होती है।
  2. बच्चों के सिर में अक्सर दर्द रहता है।
  3. बच्चे आँखों को बार-बार मलते हैं।
  4. आँखों में सूजन, विचिप्ताहट तथा लाल रहती है।
  5. दृष्टि-दोष युक्त बच्चे अधिक झुक कर पढ़ते तथा लिखते हैं।

5. अभिभावकों द्वारा निरीक्षण- कई बार समूह के बड़े होने के कारण अध्यापक द्वारा बच्चों पर विशेष रूप से ध्यान देना संभव नहीं हो पाता परंतु थोड़े-सा ध्यान देकर माता-पिता यह आसानी से पता लगा सकते हैं कि उनके बच्चे में दृष्टि-दोष है या नहीं और यदि संदेह हो, पर उसकी पुष्टि के लिए किसी नेत्र विशेषज्ञ से बच्चे की जाँच कर सकते हैं।

नेत्र दोषयुक्त बालकों की विशेष आवश्यकताएँ

(i) पूर्णतः अंधे बालक सामान्य बालकों की तरह पढ़ व लिख नहीं सकते हैं। अतः उनके लिए विशेष विद्यालय खोले जाने की आवश्यकता होती है जहाँ अंधों के लिए विशेष रूप से विकसित ब्रेल लिपि में उन्हें शिक्षा दी जाए। यह कार्य ऐसे अध्यापक द्वारा किया जाना चाहिए जिन्हें अंधों को पढ़ाने के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षण दिया गया हो।

(ii) जितनी नजर कमजोर हो, उन पर व्यक्तिगत ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है। ताकि दृष्टि-दोष बढ़ने को रोका जा सके। सही समय पर उनका उपचार किया जा सके और उनकी शैक्षणिक उपलब्धि इस दोष के कारण प्रभावित न हो पाए।

(iii) इन बच्चों की एक अन्य महत्वपूर्ण आवश्यकता है। उन्हें हीनता को बोझ से बचाना बार-बार यह लगाना कि दृष्टि दोष के कारण बालक हीन भावना से ग्रस्त हो जाता है जिससे उनकी शैक्षणिक उपलब्धि प्रभावित होती है। अतः यह आवश्यक है कि अध्यापक इन्हें उचित प्रोत्साहन दे तथा हीन भावना से ग्रस्त न होने दे।

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