बी एड - एम एड >> बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-A - समावेशी शिक्षा बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-A - समावेशी शिक्षासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-A - समावेशी शिक्षा
प्रश्न- दृष्टि बाधित बालकों का क्या अर्थ है? दृष्टि दोष के मुख्य कारणों की विवेचना कीजिए।
अथवा
दृष्टि दोष बालक कौन होते हैं? दृष्टि दोष के क्या कारण हैं? वर्णन कीजिए।
उत्तर -
आँख मनुष्य का सबसे महत्वपूर्ण ज्ञानेंद्रिय है। हम देखकर जितना ज्ञान प्राप्त करते हैं, उतना ज्ञान हम सुनकर या पढ़कर नहीं कर सकते। जो देख नहीं सकता, उसके लिए यह संसार एक अंधकार के समान है। अगर किसी कारणवश आँख में किसी प्रकार का दोष आ जाता है तो उसके लिए यह जीवन कष्टकर हो जाता है। हम रंग-विकार तथा अपने आसपास से सम्बन्धित जानकारी द्वारा ज्ञान प्राप्त करते हैं। बालकों के दृष्टि-दोष के कारण दृष्टि दोष शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक और शैक्षिक विकास पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। दृष्टि दोष बालक वह होते हैं, जिनकी आँखों से नजदीक या दूर की वस्तुओं को स्पष्ट रूप से देख नहीं पाते। ऐसे बालक चश्मे की सहायता से वस्तुओं को देख सकते हैं तथा पढ़ भी सकते हैं। इनमें से कुछ बालक ऐसे होते हैं जो स्पष्ट रूप से मोटे अक्षरों से छपी किताबों को पढ़ सकते हैं। इन्हें आंशिक रूप से अंध कहा जाता है। कुछ बालक ऐसे होते हैं जो बिल्कुल अंधे होते हैं, अर्थात उन्हें कुछ भी नजर नहीं आता। कुछ बालक ऐसे भी होते हैं, जिनकी आँखों की रोशनी चोट, बीमारी, दुर्घटना आदि के कारण चली जाती है तथा वे देखने में अपने आप को असमर्थ पाते हैं। इस प्रकार के बालकों को हम पूर्ण अंध कह सकते हैं।
दृष्टि-दोष बालकों की परिभाषा- अमेरिका के मेडिकल संघ (1934) ने दृष्टि-दोष बालकों की कानूनी परिभाषा दी है। यह परिभाषा इस प्रकार है-
- कानूनी दृष्टि से पूर्ण दृष्टि-दोष बालक वह हैं, जिनकी दृष्टि क्षमता सुधार के बाद बेहतर आँख से 20/200 तथा इससे कम हो।
- अथवा जिनकी दृष्टि का क्षेत्र सीमित हो और 20 डिग्री का कोण बनाते हैं।
भारत सरकार के समाज कल्याण मंत्रालय ने (1987) ने दृष्टि दोष बालकों को इस प्रकार से परिभाषित किया है-
- अपनी दृष्टि खो चुके हों।
- दृष्टि दोष 6/60 या 20/20 से अधिक न हो और चश्मे के प्रयोग से आँख उत्तम हो।
- दृष्टि का क्षेत्र सीमित हो और 20 डिग्री कोण बनता हो।
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि सामान्य दृष्टि बालक किसी वस्तु को 200 फुट दूरी से साफ देख सकता है, लेकिन दृष्टि दोष बालक अगर उसी वस्तु को 20 फुट की दूरी से स्पष्ट देख सकता है तो हम उसे दृष्टि दोष बालक कहेंगे। दृष्टि दोष का परीक्षण स्नेलन चार्ट द्वारा किया जाता है। इस चार्ट का विकास डच डॉक्टर हर्बर्ट स्नेलन ने किया था। इस चार्ट का प्रयोग दूर दृष्टि दोष को मापने के लिए किया जाता है। नजदीक का दृष्टि दोष के लिए पढ़ी जानी वाली चिट्ठी का पहला अक्षर 'E' होता है। सामान्य दृष्टि वाला इस अक्षर को 200 फुट की दूरी से पढ़ लेता है। अगर कोई इसे केवल 20 फुट की दूरी से पढ़ सकता है तो उसे दृष्टि दोष है। उसका दृष्टि दोष 20/200 है।
दृष्टि-दोष बालकों को हम निम्नलिखित श्रेणियों में बाँट सकते हैं-
- आंशिक अंधे 2. अंधे
आंशिक अंधे- आंशिक रूप से अंध वे बालक होते हैं, जिनको दृष्टि दोष होता है तथा वे दूर की वस्तुओं को दृष्टि यंत्रों की सहायता से देख सकते हैं। आंशिक रूप से अंध बालकों को हम चार श्रेणियों में बाँट सकते हैं-
(i) ऐसे बालक जिनकी दृष्टि एक्यूटी 20/70 या 20/200 के मध्य होती है।
(ii) ऐसे बालक जो गंभीर दृष्टि सम्बन्धी कठिनाइयों से पीड़ित हैं।
(iii) ऐसे बालक जो नेत्र रोगों से पीड़ित हैं तथा यह रोग उनकी दृष्टि को प्रभावित करते हैं।
(iv) ऐसे बालक जो सामान्य मस्तिष्क वाले हैं। लेकिन डाक्टरों और शिक्षा-शास्त्रियों के अनुसार यह बालक कम देखने वाले बालकों को दिए गए साधनों तथा सामान के द्वारा लाभान्वित हो सकते हैं।
अंधे- ऐसे बालक जो जन्म से ही अंधे होते हैं। या जन्म के पश्चात किसी चोट या दुर्घटना बिमारी के कारण उनके नेत्रों की ज्योति चली जाती है। यह बालक सुनकर या ब्रेल लिपि के द्वारा ही पढ़ सकते हैं। इनको पूर्णतः अपनी ज्ञानेंद्रियों पर निर्भर रहना पड़ता है।
दृष्टि बाधिता के कारण- अध्ययन एक अंधविशय है क्योंकि अंध के लिए यह संसार एक अंधकारमय ही रहता है। मनुष्य को बहुत ज्ञान प्राप्त करना है। आँख बहुत अनमोल है। होने के कारण कई कारण दृष्टि बाधित के लिए निम्नलिखित कारण हो सकते हैं।
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कुपोषण प्रभाव- कुपोषण का प्रभाव बच्चों पर अवश्य पड़ता है। कई बार देखा गया है कि अगर माँ-बाप में से किसी एक का दृष्टि दोष है तो इसका असर आने वाली संतान पर पड़ता है और यह दृष्टि दोष पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहता है।
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संक्रामक रोग- संक्रामक रोगों के कारण आँखों की रोशनी पर प्रभाव पड़ता है। जो कि बाद में दृष्टि दोष का कारण बन जाता है। संक्रामक रोगों से सावधानी रखना चाहिए।
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साधारण बीमारियाँ- कभी-कभी साधारण बीमारियाँ ही दृष्टि दोष का कारण बन जाती हैं। शुगर वाले व्यक्ति को प्रायः दृष्टि दोष हो जाता है।
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चोट व दुर्घटना- कई बार आँख पर चोट लगने के कारण दृष्टि दोष हो जाता है। या फिर किसी दुर्घटना इसका कारण बन सकती है।
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जहर का असर- कई बार छोटा बच्चा घर में रखी दवाई या कोई जहरीली वस्तु का खा जाता है जो कि दृष्टि दोष का कारण बन जाता है। पेट, शौच, नीला पथरी आदि इसके उदाहरण हैं। इसके अतिरिक्त आँख में किसी नुकिली वस्तु का लगना, लापरवाही से चूना आदि का उपयोग, मिट्टी के गुब्बारे आदि का लगना भी दृष्टि दोष का कारण बन जाता है।
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जन्म से असमान्य- कुछ बच्चे जन्मजात अंधे होते हैं। कुछ केसों में देखा गया है कि उनकी आँखें ही नहीं होती तथा कुछ केसों में यह पाया गया है कि उनकी आँखें तो होती हैं लेकिन उनमें ज्योति नहीं होती या बहुत कम होती है।
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जन्म के पश्चात- कई बार दाई या आया की लापरवाही से बच्चे को दृष्टि दोष हो सकता है। गिरने, गलत दवाई के प्रयोग या आहार की कमी के कारण भी दृष्टि दोष संभव हो सकता है।
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