बी एड - एम एड >> बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-A - समावेशी शिक्षा बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-A - समावेशी शिक्षासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-A - समावेशी शिक्षा
प्रश्न- दृष्टि-बाधित बालकों की क्या समस्याएं हैं ? आप कम देखने वाले बालकों को शिक्षा कैसे प्रदान करें ? विवेचना कीजिए।
उत्तर -
दृष्टि-बाधित बालकों को पूर्णतः अपनी ज्ञानेन्द्रियों पर निर्भर रहना पड़ता है। उनको घर, विद्यालय तथा समाज में अपने आप को सामान्यीकृत करने में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। जिन बालकों को दृष्टि-दोष के साथ-साथ मानसिक दोष भी होते हैं, उनको परेशानी का सामना करना पड़ता है, क्योंकि दृष्टि-दोष बालकों को अपनी ज्ञानेन्द्रियों पर निर्भर रहना होता है। अतः उनके देखने, सुनने तथा स्पर्श द्वारा वस्तुओं की लंबाई, चौड़ाई, मोटाई आदि का अनुभव करने में कठिनाइयां होती हैं। दृष्टि-दोष बालकों की निम्नलिखित समस्याएं हैं-
(1) दृष्टि-दोष बालकों को अपने मार्गनिर्देशन के लिए बार-बार सहायता की आवश्यकता होती है। वे अपनी इच्छानुसार कहीं भी नहीं जा सकते।
(2) दृष्टि-दोष बालकों को अपने निरीक्षण के लिए बार-बार अस्पताल जाना पड़ता है। उनका काफी समय इन चक्करों में बीत जाता है तथा वह शिक्षा की दृष्टि से पिछड़ जाते हैं।
(3) उनको अपने आप को घर, विद्यालय तथा समाज में सामान्यीकृत करने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। वह बिना किसी की सहायता के इधर-उधर नहीं जा सकते।
यह निर्भरता कई बार उनके मन में झुंझलाहट पैदा करती है और उसमें चिड़चिड़ापन आ जाता है। कई बार उनमें हीन भावना भी आ जाती है।
(4) अगर कोई दृष्टि-दोष बालक सामान्य बालकों के साथ पढ़ रहा है तो प्रायः दूसरे बालक उसका मजाक उड़ाते हैं। इससे उस पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है और उसका मन पढ़ाई में कम लगता है।
(5) प्रायः दृष्टि-दोष बालकों को समान में हेय की दृष्टि से देखा जाता है। वह दृष्टि-दोष को पूर्व जन्म के कर्मों के साथ जोड़ते हैं तथा उनको तरह-तरह की बातों का सामना करना पड़ता है। इससे उन्हें आत्मग्लानि होने लगती है और वह जीवन के प्रति उदासीन रहने लगते हैं।
(6) दृष्टि-दोष बालकों को जब दृश्य-वस्तु के बारे में जानकारी दी जाती है तो उन्हें कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। वह पूर्णतः अपनी ज्ञानेन्द्रियों पर निर्भर रहते हैं। उन्हें कोई खतरनाक जानवर या वस्तु के बारे में जानकारी देनी हो तो उन्हें वह जानकारी स्पर्श के द्वारा ही करवाई जा सकती है।
(7) जिन बालकों को दृष्टि-दोष के साथ-साथ मानसिक दोष भी होता है वे मानसिक शक्ति कमजोर होते हैं और अधिक मुश्किल का सामना करना पड़ता है। प्रायः यह पाया जाता है कि दृष्टि-दोष वाला बालक मानसिक रूप से भी कमजोर होता है।
(8) दृष्टि-दोष बालकों को वस्तुओं की लंबाई, चौड़ाई, मोटाई एवं गोलाई आदि को मापने में असमर्थता का सामना करना पड़ता है। वह इस प्रकार का कार्य नहीं कर सकते।
आंशिक रूप से अच्छे बालकों की शिक्षा
प्रत्येक विद्यालय में आंशिक रूप से अच्छे बालक अवश्य होते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों एवं शहरों की अपेक्षा इनकी संख्या अधिक होती है। समाज और विद्यालय का यह कर्तव्य बनता है कि वह उनको शिक्षा का प्रबन्ध करें। उनकी आवश्यकताओं एवं अनुभवों के स्तर को ध्यान में रखकर, युक्त बनाकर उनकी शिक्षा का प्रबन्ध किया जा सकता है। वैसे तो आंशिक रूप से अच्छे बालकों को सामान्य बालकों के साथ ही पढ़ाया जाता है। उनका पाठ्यक्रम भी समान ही होता है। लेकिन इस बात का ध्यान रखना पड़ता है कि उनसे ऐसा कोई भी कार्य न करवाया जाए जिससे उनकी आँखों पर नकारात्मक प्रभाव पड़े।
कुछ विद्यालय मिलकर किसी एक स्थान पर उनकी आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर उनकी शिक्षा का प्रबन्ध कर सकते हैं। उनकी शिक्षा देते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए—
(1) किताबें— सामान्यतः किताबें 10 या 12 पॉइंट प्रिंट में छपी होती हैं। लेकिन दृष्टि-दोष बालकों के लिए किताबें 18 से 24 पॉइंट के मध्य में होनी चाहिए। काले स्थान का प्रयोग होना चाहिए। अध्यापक को चाहिए कि वह ब्लैकबोर्ड पर सफेद रंग की चॉक के साथ-साथ रंगदार चॉक का भी प्रयोग करें। घर, विद्यालय में कोई भी ऐसा सामान प्रयोग में नहीं लाना चाहिए जिससे उनकी आँखों पर प्रभाव पड़ता हो।
(2) रोशनी— आंशिक रूप से अच्छे बालकों के लिए रोशनी एक वरदान है, चाहे वह प्राकृतिक रोशनी हो या बनावटी रोशनी। आंशिक रूप से अच्छे बालकों को कम रोशनीप्रद स्थानों में नहीं रखना चाहिए। स्कूल की दीवारें हल्के रंग की होनी चाहिए। कम रोशनी वाले स्थान पर पढ़ाई नहीं होनी चाहिए, जहाँ प्राकृतिक रोशनी आती हो।
(3) फर्नीचर— कक्षा में रखा फर्नीचर हल्के रंग का एवं हल्का होना चाहिए, ताकि आवश्यकता पड़ने पर आसानी से बाहर निकाला जा सके। कक्षा-कक्ष में फर्नीचर ऐसे रखना चाहिए ताकि बालकों के आने-जाने में कोई असुविधा न हो।
(4) प्रेरणा- आंशिक रूप से अच्छे बालकों को हमें प्रेरणा से भरी कहानियाँ सुना कर उनको प्रेरित करना चाहिए। महाभारत काल में श्रवण व उसके माता-पिता की कहानी एक अच्छा उदाहरण है। उनकी सकारात्मक व आशावादी जीवन की प्रेरणा देनी चाहिए।
(5) शारीरिक निरीक्षण- आंशिक रूप से अच्छे बालकों का समय-समय पर शारीरिक परीक्षण करवाना चाहिए। उनकी बीमारियों का एक रिकॉर्ड रखना चाहिए तथा कम से कम छः माह में एक बार संपूर्ण शरीर का निरीक्षण अवश्य होना चाहिए। आँख से सम्बंधित बीमारियों की पूरी जानकारी होनी चाहिए। उन्हें आँखों की सफाई, आँखों की सुरक्षा, आँखों की क्रियाशीलता पर ध्यान देना चाहिए। समय-समय पर मनोवैज्ञानिक व मानसिक परीक्षण भी करते रहना चाहिए। उनके माता-पिता के साथ लगातार संपर्क में रहना चाहिए।
(6) शैक्षिक प्रगति- विद्यालय को यह देखना चाहिए कि इन प्रकार के बालकों को शैक्षिक प्रगति का ध्यान रहे। यदि बालकों को किसी प्रकार की कोई शैक्षिक समस्या हो तो उसे तुरंत दूर करना चाहिए। माता-पिता को भी यह कहकर बताना है कि वह भी अपने बालकों की शैक्षिक प्रगति के बारे में जानकारी प्राप्त करते रहें।
(7) व्यावसायिक निर्देशन- हमें इन बालकों की आवश्यकताओं, रूचियों, अभिरुचियों, क्षमताओं तथा योग्यताओं को ध्यान में रखकर उन्हें व्यावसायिक निर्देशन देना चाहिए। शैक्षिक और व्यावसायिक निर्देशन का गहरा सम्बन्ध है अतः हमें उन्हें व्यावसायिक निर्देशन देना चाहिए ताकि वह आत्मनिर्भर होकर समाज में सुखी व सम्मानपूर्वक जीवन जी सके।
(8) विशेष अध्यापक- कम देखने वाले बालकों की शिक्षा के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित अध्यापक का प्रबन्ध करना चाहिए। उसे आँखों से सम्बंधित बीमारियों की पूर्ण जानकारी होनी चाहिए। इन बालकों की मनोवैज्ञानिक, शैक्षिक तथा सम्बंधित कठिनाइयों का पूरा ज्ञान होना चाहिए। एक अच्छा अध्यापक बालक में अच्छे गुणों का विकास कर सकता है। वह उसे अच्छा जीवन जीने के लिए प्रेरित करके उसका शैक्षिक, व्यावसायिक तथा सामाजिक समायोजन कर सकता है।
आंशिक रूप से अच्छे बालकों की शिक्षा देते समय अगर उपर्युक्त बातों को ध्यान में रखेंगे तो उन्हें अपना उद्देश्य प्राप्त करने में अवश्य ही सफलता प्राप्त होगी।
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