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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-A - समावेशी शिक्षा

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :215
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2700
आईएसबीएन :0

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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-A - समावेशी शिक्षा

प्रश्न- श्रवण दोष से ग्रस्त बालकों की पहचान तथा कारणों पर प्रकाश डालिए।

अथवा
श्रवण बाधिता के क्या लक्षण हैं? श्रवण बाधिता होने के क्या कारण हैं?

उत्तर-

जो बच्चे जन्म से ही बहरे होते हैं उनकी पहचान तो जन्म के समय ही हो जाती है, लेकिन कुछ बच्चों में बहरेपन किसी और कारण से भी हो सकता है। हम श्रवण-बाधित बालक की पहचान उसके व्यवहार से कर सकते हैं। यदि कोई बालक सुनते समय बार-बार हाथों या बाँहों को कान पर हाथ रख लेता है तो हमें यह समझना चाहिए कि उसको सुनने में कुछ परेशानी हो रही है।

श्रवण बाधित बालकों की पहचान निम्न प्रकार से कर सकते हैं:

  • यदि कक्षा में वह बार-बार कान के अंदर या उँगली या कोई दूसरी वस्तु कागज, पेन, पेंसिल आदि डालता रहता है।

  • उसके कान में लगातार कोई तरल पदार्थ आदि बहता दिखाई देता है।

  • कक्षा में पढ़ते समय वह बार-बार अध्यापक को बीच-बीच में टोकता या इस प्रकार का आभास देता है कि उसे ठीक प्रकार से सुनाई नहीं दे रहा।

  • कक्षा में जब अध्यापक पढ़ा रहा हो तो अध्यापक के बार-बार बुलाने पर या टोकने पर जवाब न देता हो या अध्यापक की तरफ ध्यान न देता हो।

  • सुनाई न देने के कारण कक्षा में उसका दिल न लगता हो। बालक को कक्षा में दिल न लगने के दूसरे कारण भी हो सकते हैं लेकिन श्रवण बाधिता भी एक कारण है।

  • जब अध्यापक की आवाज को अपेक्षा उसकी शारीरिक हलचल की तरफ या होठों की तरफ अधिक ध्यान देता हो।

  • कक्षा में बालक आवाज सुनने के यंत्र का प्रयोग करता हो।

  • कक्षा में अध्यापक किसी विशेष विषय-वस्तु पर प्रश्न करता हो व बालक किसी दूसरे प्रश्न का जवाब देता हो।

  • उसका भाषा का पूरा ज्ञान न हो तथा बैठ कर वह अपने आप को सुस्त व असामान्य महसूस करता हो।

  • कक्षा में बैठा बालक इधर-उधर अधिक देखता होता और अध्यापक की तरफ पूरा ध्यान न देता हो।

  • वह बहुत धीरे-धीरे या अधिक ऊँचा बोलता हो।

  • उसे शब्दों के उच्चारण में पर्याप्त कठिनाई होती हो।

  • वह एकाग्रता न रखता हो।

National Sample Survey, 1991 के अनुसार भारत में अनुमानित 4.482 मिलियन श्रवण व बधिर हैं। पुरुषों की संख्या औरतों की तुलना में ज्यादा है।

श्रवण बाधिता के कई कारण हो सकते हैं। कुछ बालक पैदा ही श्रवण बाधित होते हैं। कुछ बालक जन्म के परवश, चोट, बीमारी, दुर्घटना आदि के कारण श्रवण बाधित हो जाते हैं। श्रवण बाधिता के मुख्य कारण इस प्रकार हैं:

(1) वंशानुगत- श्रवण बाधिता 11-60 प्रतिशत तक वंशानुगत होती है तथा कई बार यह रोग पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहता है।

(2) छूआ-छूत रोग- जन्म के परवश, अगर बच्चे को छूआ वाली बीमारियाँ जैसे कणपड़े या इन्फ्लुएंजा हो जाते हैं तो इसका प्रभाव बच्चे के श्रवण अंगों पर पड़ता है तथा वह श्रवण बाधित हो जाता है।

(3) दवाइयाँ- गर्भवती महिला अगर आवश्यकता से अधिक दवाइयों का इस्तेमाल करती है तो यह बच्चे की श्रवण बाधिता का कारण बन सकता है। गर्भवती माँ को चाहिए कि वह आवश्यकता से अधिक दवाइयों का प्रयोग न करें।

(4) कुपोषण- गर्भवती माता को पौष्टिक भोजन करना चाहिए। उचित आहार न मिलने पर उसका प्रभाव गर्भ में पल रहे बच्चे पर पड़ता है। कुपोषण भी श्रवण बाधिता का मुख्य कारण बन सकता है। गर्भवती माँ को विटामिन आदि से भरपूर भोजन करना चाहिए तथा कठोर मसाले, शराब, सिगरेट आदि के सेवन से बचना चाहिए।

(5) जन्मी खसरा- 1980 में जन्म खसरा महामारी के रूप में फैला था। खोजों के अनुसार यह पाया गया कि जो गर्भवती महिलाएँ इस बीमारी से पीड़ित थीं, उनकी संतानों की श्रवण शक्ति कमजोर पाई गई। खोजों से यह भी पाया गया कि 27% जन्म खसरा से प्रभावित थे।

(6) असुरक्षित प्रसव- कई बार शहर से दूर रहने वाले लोग वहीं पर दाई आदि से प्रसव करवाते हैं जो कि सुरक्षित प्रसव नहीं होता। अधिक रक्त बहने के कारण भी श्रवण बाधिता हो सकती है।

(7) जन्म के समय- बच्चे के जन्म के समय ऑक्सीजन की कमी, प्रसव क्रिया के दौरान चिमटी आदि का गलत प्रयोग, समय से पहले बच्चे का जन्म आदि भी सुनने की क्षमता पर प्रभाव डालते हैं। कई बार बच्चे को जन्म के परवश एकदम बाद पीलिया हो जाता है। इसका इलाज जल्दी से जल्दी कराना चाहिए क्योंकि पीलिया भी श्रवण बाधिता का कारण बन सकता है।

(8) जन्म के परवश- बुखार, पीलिया, छूआ की बीमारियों से बच्चे को बचाना चाहिए।

यदि बच्चे की आँख या कान से लगातार कोई द्रव बह रहा हो तो डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए और जल्दी से जल्दी इलाज करवाना चाहिए। लापरवाही करने से बच्चे श्रवण बाधिता के शिकार हो सकते हैं।

श्रवण सहायता केंद्र, अखिल भारतीय चिकित्सा संस्थान, नई दिल्ली ने माँ-बाप के लिए निम्न निर्देश दिए हैं ताकि वे इनका प्रयोग में लाएँ-

  1. माँ-बाप बच्चे को बताएं कि वे उसे चाहते हैं, उसे प्यार करते हैं तथा उसे पूरा विश्वास दें। बच्चे को यह विश्वास दिलाना चाहिए कि वह बोल सकता है। जब माँ-बाप बच्चे से बात करें तो उसके चेहरे की तरफ देखें ताकि बच्चे को बोलने के समय होंठ और चेहरे का ध्यान रहे।
  2. माँ-बाप को बच्चे से खुलकर बात करनी चाहिए तथा उसके मनोभाव को समझकर तथा उसकी इच्छाओं की ध्यान में रखकर उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति करनी चाहिए। बच्चे के मानसिक स्तर को ध्यान में रखकर उसे चित्रों वाली किताबों से पढ़ाना चाहिए तथा कहानियाँ भी पढ़कर सुनानी चाहिए।

  3. बच्चे को आस-पास के लोगों के साथ घुलने-मिलने का अवसर देना चाहिए ताकि वह समाज में अपने आपको समाजीकृत कर सके। इस बात का अवश्य ध्यान रखना चाहिए कि जो लोग बच्चे से मिलते हैं, वे उसका मनोबल तो नहीं गिरा रहे।

  4. माँ-बाप का व्यवहार बच्चे के साथ दोस्ताना होना चाहिए तथा माँ-बाप को बच्चे के लिए समय निकालना चाहिए।

  5. माँ-बाप को स्रव के कार्य लेने चाहिए क्योंकि जो कान से सुन नहीं सकता वह इसका कार्य आँखों के द्वारा करता है तथा काफी हद तक श्रवण बाधिता की आँखों द्वारा दूर कर लेता है।

  6. माँ-बाप को चाहिए कि बच्चे के कान में बात करें। इस प्रकार मौखिक दिया गया ज्ञान उसके शब्दकोष में बढ़ोतरी करेगा।

  7. बच्चे के मानसिक स्तर व योग्यता के अनुसार उससे काम की अपेक्षा करनी चाहिए।

  8. माँ-बाप को चाहिए कि वे आस-पास के लोग या रिश्तेदार अगर बच्चे के बारे में उल्टा-सीधा बातें करें तो उनकी तरफ ध्यान न देने दें। माँ-बाप को इस बात के लिए शारीरिक तौर पर भी सावधान होना चाहिए कि उनका बच्चा श्रवण बाधित है।

  9. माँ-बाप को चाहिए कि वे बच्चे को तुलनात्मक दूसरे बच्चों के साथ न करें तथा बच्चे को कक्षा के दूसरे बच्चों के साथ घुलने-मिलने देना चाहिए।

  10. हर छोटी-छोटी बात के लिए उसे डाँटना नहीं चाहिए तथा न ही बच्चे को यह अहसास होना चाहिए कि वह श्रवण बाधित है।

  11. माँ-बाप को चाहिए कि वे बच्चे का मनोबल बढ़ाते रहें तथा उसको प्रेरणा दें कि वह यह कार्य कर सकता है।

  12. बच्चे के साथ बात करते समय पूरे वाक्यों का उच्चारण करना चाहिए तथा उसकी गलतियों को दूर करना चाहिए।

  13. बच्चे का इलाज चल रहा हो तो माँ-बाप को धैर्य से कार्य लेना चाहिए।

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