बी एड - एम एड >> बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-A - समावेशी शिक्षा बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-A - समावेशी शिक्षासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-A - समावेशी शिक्षा
प्रश्न- श्रवण बाधित या श्रवण दोष से ग्रस्त बालकों की असमर्थताओं तथा इन बालकों की शिक्षा में शिक्षक की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
अथवा
श्रवण बाधित बालकों की असमर्थताओं तथा इन बालकों को शिक्षा प्रदान करने में शिक्षक की भूमिका की विवेचना कीजिए।
उत्तर-
बाहरी संसार की जानकारियाँ हम सुनकर प्राप्त करते हैं। श्रवण के द्वारा ही हमें खतरों का आभास होता है। श्रवण दोषी बालकों को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है तथा वे क्रियाशील होने में असमर्थ हो जाते हैं व जीवन से सम्बन्धित कार्यों को करने में अपने आपको असमर्थ महसूस करते हैं।
श्रवण बाधित बालकों की असमर्थताएँ निम्न प्रकार की होती हैं:
(1) व्यक्तिगत क्रियाकलाप असमर्थता-
बालक अपने व्यक्तिगत कार्य करने में क्रियात्मक रूप से असमर्थ होते हैं तथा अधिक सक्रिय नहीं होते। यह बालक सामान्यत: कुंठाग्रस्त एवं अवसादग्रस्त होते हैं। ये केवल इशारों के द्वारा ही दूसरों के भावों को समझ सकते हैं। ये जीवन के प्रति अधिक सकारात्मक नहीं होते तथा इनमें आगे बढ़ने की इच्छाशक्ति का अभाव रहता है। इनमें सामान्य बालकों के साथ घुलमिल कर कार्य करने की योग्यता न के बराबर होती है। जीवन को चुनौती समझकर जीने की तमन्ना नहीं होती।
(2) सामाजिक क्रियाकलाप असमर्थताएँ-
ये बालक अपने आपको समाज के साथ समाजीकृत करने में असमर्थ होते हैं। सामाजिक कार्यों में भाग लेने इनके लिए कठिन होता है। हीन-भावना से ग्रस्त होने के कारण इनमें इच्छाशक्ति तथा आत्म-विश्वास की कमी होती है। इसी कारण ये समाज से कटे-कटे रहते हैं। इनका समाजीकरण एक मुश्किल कार्य होता है। कुछ बालकों सीखने की इच्छा करते हैं तथा वे अपने उद्देश्य में कामयाब हो जाते हैं।
(3) शैक्षिक क्रियाकलाप असमर्थताएँ-
श्रवण-बाधित बालकों का मौखिक विकास नहीं हो पाता क्योंकि वे केवल इशारों के द्वारा ही ज्ञान की प्राप्ति करते हैं। मौखिक विकास न होने के कारण इनका भाषा का विकास भी नहीं हो पाता। पढ़ने की समस्या से इनके साथ होती ही है, सीखना इनके लिए अति कठिन होता है, इनकी शैक्षिक बुद्धि-लव्धि बहुत कम होती है।
वे केवल संकेतों व इशारों के सहारे ही ज्ञान प्राप्त करते हैं।
शिक्षक की भूमिका-
कभी-कभी कुछ ऐसे बालक भी होते हैं जिनका कुछ सुनाई देता है या फिर वे अधिक ऊँचा सुनते हैं। इन बालकों को सामान्य बालकों के साथ शिक्षा दी जानी चाहिए।
अध्यापक को चाहिए कि वह इन बालकों के प्रति अधिक ध्यान दें तथा इन्हें हर प्रकार की सम्भव सहायता प्रदान करें। इन बालकों की शिक्षा देते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए—
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अध्यापक को इन बालकों के श्रवण-दोष के स्तर का पूरा ज्ञान होना चाहिए तथा उसी के अनुसार उनकी शिक्षा प्रदान करनी चाहिए।
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शिक्षक ऐसे बालकों को आगे की सीटों पर बिठाए ताकि वे आवाज़ को आसानी से सुन लें।
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अगर अध्यापक ऐसा महसूस करता है कि सामान्य बालकों के साथ शिक्षा देने से इनका अधिक लाभ नहीं हो रहा है, तो उसे इन बालकों के लिए विशेष कक्षा का प्रबन्ध करके अलग से पढ़ाना चाहिए।
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अध्यापक को इस बात पर विशेष ध्यान देना चाहिए कि जो बालक श्रवण यंत्रों की सहायता से सुन सकते हैं, उनके श्रवण यंत्र ठीक हों तथा वे उचित रूप से उनका प्रयोग करें।
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अगर इन बालकों की कुछ विशेष आवश्यकताएँ हों तो उन्हें पूरा करने का हर संभव प्रयास करना चाहिए।
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कक्षा में दूसरे बालक इन बालकों के उचित व्यवहार करते हैं या नहीं, इसका भी अध्यापक को पूरा ध्यान रखना चाहिए।
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इन बालकों के प्रति अध्यापक का दृष्टिकोण सकारात्मक, सहयोगपूर्ण एवं सहानुभूतिपूर्ण होना चाहिए।
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अध्यापक को समय-समय पर इन बालकों के माता-पिता से मिलता रहना चाहिए।
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क्योंकि ये बालक कान से ऊँचा सुनते हैं, वे अपने आसपास के घर, विद्यालय तथा समाज में समाजीकरण करने में दिक्कत महसूस करते हैं। अध्यापक को चाहिए कि वे विद्यालय में इन बालकों को समाजीकरण करने में सहायता करें।
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विद्यालय में इन बालकों के प्रति सभी का दृष्टिकोण सकारात्मक, सहयोगपूर्ण तथा दोस्ताना होना चाहिए। शिक्षक को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि कोई इन्हें हीन-भावना से न देखे। इनकी उपलब्धियों को ध्यान में रखकर इन्हें प्रेरित करते रहना चाहिए।
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