बी एड - एम एड >> बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-C - लिंग, विद्यालय एवं समाज बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-C - लिंग, विद्यालय एवं समाजसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-C - लिंग, विद्यालय एवं समाज
प्रश्न- समाज में लैंगिक असमानता कहाँ-कहाँ व्याप्त है?
उत्तर-
सामाजिक असमानता का यह रूप हर जगह नज़र आता है लेकिन राजनीति के अध्ययन में शायद ही इस बात की पहचान की जाती है। लेकिन असमानता को स्वाभाविक या तो प्राकृतिक और अपरिहार्य मान लिया जाता है। लेकिन लैंगिक असमानता का आधार स्त्री और पुरुष की जैविक बनावट नहीं बल्कि इन दोनों के बारे में प्रचलित रूढ़ि धारणाएँ और तयशुदा सामाजिक भूमिकाएँ हैं।
लड़के और लड़कियों के पालन-पोषण के क्रम में यह मान्यताएँ उनके मन में बैठा दी जाती हैं कि औरतों की मुख्य ज़िम्मेदारी गृहस्थी चलाने और बच्चों का पालन-पोषण करने की है। यह कई पीढ़ियों से परिवारों में लैंगिक विभाजन के रूप में संरक्षित है। औरतें घर के अंदर का सारा काम करती हैं जैसे— खाना बनाना, सफाई करना, कपड़े धोना और बच्चों की देखरेख करना आदि करती हैं जबकि मर्द घर के बाहर का काम करते हैं। ऐसा नहीं है कि मर्द ये सारे काम नहीं कर सकते। दरअसल वे सोचते हैं कि ऐसे कामों को करना औरतों की ज़िम्मेदारी है पर जब सिलाई-कढ़ाई से लेकर ईंटें ढोने जैसे सारे कामों के लिए पैसे मिलते हैं तो मर्द खुशी-खुशी यही काम घर के बाहर करते हैं। अधिकतर दर्जी या होटल के रसोइए पुरुष होते हैं। इसी प्रकार औरतें घर के बाहर का काम न करती हों - ऐसा भी नहीं है। गाँवों में रसोई के पानी और जलावन जुटाने से लेकर खेत में घटाने तक का काम करती हैं। शहरों में भी देखते हैं कि कई गरीब स्त्रियाँ किसी मध्यमवर्गीय परिवार में नौकरी का काम कर रही हैं और अपने परिवार का पेट पालने के लिए परिश्रम कर रही हैं। सच यह है कि अधिकतर महिलाएँ घरेलू काम के अतिरिक्त अपनी आमदनी के लिए कुछ-न-कुछ काम करती हैं लेकिन उनके काम को ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं माना जाता। उन्हें दिन-रात काम करने की उसका श्रेय नहीं मिलता।
श्रम के इस तरह के विभाजन का नतीजा यह हुआ है कि औरत तो घर की चारदीवारी में सिमट के रह गई हैं और बाहर का सार्वजनिक जीवन पुरुषों के कब्जे में आ गया है।
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