बी एड - एम एड >> बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-C - लिंग, विद्यालय एवं समाज बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-C - लिंग, विद्यालय एवं समाजसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-C - लिंग, विद्यालय एवं समाज
प्रश्न- जातिगत भेदभाव एवं संकीर्ण राजनीति को कैसे प्रभावित करती है?
उत्तर-
जातिगत भेदभाव एवं संकीर्ण राजनीति को निम्नलिखित प्रकार से प्रभावित करती हैं—
जब पार्टियाँ चुनाव के लिए उम्मीदवारों के नाम तय करती हैं तो चुनाव क्षेत्र के मतदाताओं की जातियों का हिसाब ध्यान में रखती हैं ताकि उन्हें चुनाव जीतने के लिए ज़रूरी वोट मिल जाए। जब सरकार का गठन किया जाता है तो राजनीतिक दल इस बात का ध्यान रखते हैं कि इसमें विभिन्न जातियों और कबीलों के लोगों को उचित जगह दी जाए।
राजनीतिक पार्टियाँ और उम्मीदवार समर्थन हासिल करने के लिए जातीय भावनाओं को उकसाते हैं। कुछ लोग तो लोकतंत्र को जातीय और मज़हबी ध्रुवीकरण के रूप में देखना चाहते हैं। सांप्रदायिक राजनीति और एक समुदाय के प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखा जाता है।
राजनीति में जाति पर जोर देने के कारण कई बार यह धारणा बन सकती है कि चुनाव जातियों का खेल है, कुछ और नहीं। यह बात सच नहीं है। ज़रा इन चीजों पर गौर कीजिए— जबकि किसी भी एक संसदीय चुनाव क्षेत्र में किसी एक जाति के लोगों का बहुमत नहीं है, इसलिए हर पार्टी और उम्मीदवार को चुनाव जीतने के लिए एक जाति और एक समुदाय से ज़्यादा लोगों का भरोसा हासिल करना पड़ता है।
कोई भी पार्टी किसी एक जाति या समुदाय के सभी लोगों का वोट हासिल नहीं कर सकती। अगर किसी जाति विशेष को किसी एक पार्टी का वोट बैंक कहें तो इसका मतलब यह होता है कि उस जाति के ज़्यादातर लोग उसी पार्टी को वोट देते हैं। अगर किसी चुनाव क्षेत्र में एक जाति के लोगों को प्रमुख माना जा रहा हो तो अनेक पार्टियों को उसी जाति के उम्मीदवार खड़ा करने से कोई रोक नहीं सकता। ऐसे में कुछ मतदाताओं के सामने उनकी जाति के एक से ज़्यादा उम्मीदवार होते हैं तो किसी-किसी जाति के मतदाताओं के सामने उनकी जाति का एक भी उम्मीदवार नहीं होता। हमारे देश में सत्तारूढ़ दल, वर्तमान सांसदों और विधायकों को अक्सर हार का सामना करना पड़ता है। अगर जातियों और समुदायों की राजनीतिक पसंद एक ही होती तो ऐसा संभव नहीं हो पाता।
स्पष्ट है कि चुनाव में जाति की भूमिका महत्वपूर्ण होती है, किंतु दूसरे कारक भी इतने ही असरदार होते हैं। मतदाता अपनी जातियों से जितना जुड़ाव रखते हैं, अक्सर उससे ज़्यादा गहरा जुड़ाव राजनीतिक दलों से रखते हैं। एक जाति या समुदाय के भीतर भी अमीर और गरीब लोगों के हित अलग-अलग होते हैं। एक ही समुदाय के अमीर और गरीब लोग अक्सर अलग-अलग पार्टियों को वोट देते हैं। सरकार के कामकाज के बारे में लोगों की राय और नेताओं की लोकप्रियता भी चुनावी अवसर निर्णय में असरदार होती है।
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