बी एड - एम एड >> बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-C - लिंग, विद्यालय एवं समाज बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-C - लिंग, विद्यालय एवं समाजसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रश्नपत्र- IV-C - लिंग, विद्यालय एवं समाज
प्रश्न- मीडिया स्त्रियों की छवि निर्धारण में किस प्रकार सहायक है?
लघु उत्तरीय प्रश्न
- किसके पास जनमत को प्रभावित करने की शक्ति होती है?
- ऐसी कौन-सी फिल्में हैं जिन्होंने परम्परागत रूढ़िवादिता को चुनौती दी है?
उत्तर-
फिल्में और मीडिया विधायन सामाजिक सम्बन्धों को चुनौती दे सकते हैं या जेंडर सम्बन्धों को मजबूत बना सकते हैं। उनके पास जनमत को प्रभावित करने की क्षमता होती है। उत्पादों के विज्ञापन करते समय कॉर्पोरेट मीडिया बच्चों को अपना लक्ष्य बनाता है। यह दर्शकों को प्रस्तुत करता है जिससे लोग जो उत्पाद चाहते हैं वे उत्पाद खरीदते जाएँ। इसी के साथ-साथ कॉर्पोरेट फिल्में, नई फिल्में और मीडिया रिपोर्ट्स पितृसत्ता को चुनौती देते हैं या सशक्तिकरण को बढ़ाते हैं। महिला वैज्ञानिकों के योगदान के बारे में बच्चों को शिक्षित करने हेतु 1980 में माइक्रोसॉफ्ट ने एक छोटी फिल्म की फंडिंग की थी। उसमें एक युवा लड़की थी जिसे विज्ञान पसंद था। फिल्म के अंत में एक बच्चा पुस्तकालय में बैठा दिखाया गया था। जब इस सम्बन्ध में प्रश्न पूछा गया कि किस चीज की आविष्कार किसने किया है और वैज्ञानिकों के नाम क्या हैं? बच्चे पुरुष वैज्ञानिकों के नाम तो बहुत आसानी से बता रहे थे लेकिन महिला वैज्ञानिकों के नाम नहीं बता पा रहे थे। यह लघु फिल्म महिला वैज्ञानिकों के योगदान पर एक टिप्पणी के साथ समाप्त होती है।
भारत में फिल्में हिन्दी, तमिल, तेलुगू, कन्नड़, मलयालम और अनेक अन्य भारतीय भाषाओं में बनाई जाती हैं। इन फिल्मों के प्रति जनता में बहुत आकर्षण होता है और किरदार से जुड़े निर्णय लेने के सम्बन्ध में ये फिल्में जनता को बहुत प्रभावित करती हैं। भारत में कुछ फिल्में नीरस रूढ़िवादिता की लीक से हटकर बनाई गयीं और इन फिल्मों ने जेंडर रूढ़िवाद को चुनौती देने वाली एक ऐसी ही फिल्म थी 'पिंक'। इस फिल्म ने निर्णय लेने की महिलाओं की क्षमता को स्वीकार किया था। इसने महिलाओं के बारे में विद्यमान रूढ़िवाद के अनेक सम्बन्ध में चुनौती दी। 'दंगल' नामक फिल्म जेंडर भूमिकाओं को लेकर की संभावनाओं को सामने लेकर आयी थी।
बॉलीवुड की फिल्म 'चक दे इंडिया' एक अन्य सफल कॉमर्शियल फिल्म थी जिसने जेंडर प्रायोजनों को चुनौती दी थी। यह फिल्म उन पूर्वाग्रहों के बारे में थी जिनका सामना खेलकूद में भारतीय लड़कियों को करना पड़ता है। पितृसत्ता और जेंडर भूमिकाओं के मानकों के सुदृढ़ीकरण के कारण समाज महिलाओं से कुछ विशिष्ट भूमिकाओं के निर्वहन की ही उम्मीद रखता है। समाज यह उम्मीद करता है कि महिलाएँ निजी क्षेत्रों में इन्हीं भूमिकाओं तक सीमित रहें। बॉलीवुड के जाने-माने अभिनेता शाहरुख खान इस फिल्म में हॉकी के एक कोच का किरदार निभाते हैं। शाहरुख खान भारत की महिला हॉकी टीम को प्रशिक्षित करते हैं और देश में महिला हॉकी टीम को चौथे विश्व कप को वापस लेने का निर्णय लेते हैं। इंडियन हॉकी एसोसिएशन के सदस्य को रेखांक बहुत पितृसत्तात्मक है और वे सोचते हैं कि महिलाओं को घर और परिवार को देखभाल के लिये घर पर ही रहना चाहिए। उन्हें लगता है कि महिला हॉकी टीम के सफल होने की कोई सम्भावना नहीं है। 'चक दे इंडिया' जेंडर के प्रति प्रचलित व्यवहार को चुनौती देती है। यह फिल्म भारत में लड़कियों के बारे में स्थापित धारणाओं को तोड़ने के लिये अपने पात्रों पर निर्भर है।
इस फिल्म ने यह परिभाषित किया कि सम्पूर्ण भारत में महिलाओं को सिर्फ इसी निगाह से देखा जाता है कि वह घर के बाहर के दुनियावी मामलों में कार्य करने की क्षमता उनमें नहीं होती। हालाँकि खेलकूद के इस विषय ने इस प्रतीक को स्थापित किया कि उपलब्धियों को साथ मिलकर हासिल किया जा सकता है, लेकिन इसे हम वास्तविक जीवन में भी लागू कर सकते हैं। ऐसी महिलाओं की सामाजिक शक्ति का इस्तेमाल करके किया जा सकता है और इस प्रकार महिलाएँ नई सम्भावनाओं को अन्वेषण करने में सक्षम हो सकती हैं।
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