बी काम - एम काम >> बीकाम सेमेस्टर-2 व्यावसायिक प्रबन्ध बीकाम सेमेस्टर-2 व्यावसायिक प्रबन्धसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीकाम सेमेस्टर-2 व्यावसायिक प्रबन्ध - सरल प्रश्नोत्तर
महत्वपूर्ण तथ्य
नियोजन उद्देश्यों के लिए भावी कार्यकलापों के बारे में सर्वोत्तम के चयन हेतु निर्णय लेने की बौद्धिक प्रक्रिया है।
• नियोजन की अवधारणा चयनात्मक, सार्वभौमिक, उद्देश्यपरक, लोचशील तथा दूरदर्शी होती है।
• नियोजन पूर्वानुमानों पर आधारित होता है।
• नियोजन सतत्गामी एवं लोचपूर्ण प्रक्रिया है।
• सर्वोपरिता को नियोजन प्रबन्ध का प्राथमिक कार्य माना जाता है।
• नियोजन के उद्देश्यों में भावी कार्यों में निश्चितता, विशिष्ट दिशा प्रदान करना, समन्वय की स्थापना, लक्ष्य की प्राप्ति, कुशलता में वृद्धि आदि है।
• नियोजन के सिद्धांतों में उद्देश्यों में योगदान का सिद्धांत, कार्यकुशलता का सिद्धांत, व्यापकता का सिद्धांत, मोर्चाबंदी का सिद्धांत आदि प्रमुख है।
• लक्ष्यों या उद्देश्यों का निर्धारित करना नियोजन प्रक्रिया का प्रथम चरण है तथा अनुवर्तन अन्तिम चरण होता है।
• योजनाएँ विभिन्न प्रकार की हो सकती है।
• प्रबन्ध के स्तर पर योजनाएँ उच्चस्तरीय, मध्यस्तरीय, निम्नस्तरीय होती है।
• उपयोग के आधार पर योजनाएँ स्थायी तथा एकल उपयोग वाली हो सकती है।
• स्थायी योजनाएँ संस्था के व्यापक उद्देश्यों के लिए बनायी जाती है।
• एकल योजनाएँ कम अवधि की होती है।
• स्थायी योजनाएँ संस्था के व्यापक उद्देश्यों के लिए बनायी जाती है।
• उद्देश्य के आधार पर योजनाएँ नवाचार, सुधार, क्रियात्मक हो सकती है।
• विस्तृत योजना सम्पूर्ण उपक्रम की समस्याओं से सम्बन्धित होती है।
• योजनाएँ भावी अनिश्चितता तथा परिवर्तन का सामना करने में सक्षम बनाती है तथा उतावले निर्णयों पर रोक लगाती है।
• नियोजन कर्मचारियों की पहलपन की भावना का गला घोट देता है व प्रबन्धकों को कठोर विधि से कार्य करने को बाध्य करती है।" यह कथन जार्ज आर. टैरी का है।
• नियोजन सरल, मितव्ययी, उद्देश्यपूर्ण, व्यापक, लोचपूर्ण, व्यावहारिक, विश्वसनीय, संतुलित, भविष्य के लिए आदि गुणों से परिपूर्ण होना चाहिए।
• हेनरी फेयोल के अनुसार - “एक प्रभावी नियोजन उसे कहा जा सकता है जिसमें निरन्तरता, एकता, लोच एवं परिशुद्धता हो।"
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