बी काम - एम काम >> बीकाम सेमेस्टर-2 व्यावसायिक प्रबन्ध बीकाम सेमेस्टर-2 व्यावसायिक प्रबन्धसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीकाम सेमेस्टर-2 व्यावसायिक प्रबन्ध - सरल प्रश्नोत्तर
महत्वपूर्ण तथ्य
• परिवर्तन तीव्र प्रक्रिया है।
• परिवर्तन चाहे कितना भी आवश्यक क्यों न हो, उसका प्रतिरोध होना भी स्वाभाविक है।
• परिवर्तनों के अनुरूप व्यावसायिक संस्था का कार्य करना तथा प्रबन्ध व्यवस्था का संचालन करना परिवर्तनों की अवधारणा कहा जाता
• परिवर्तन का प्रबन्ध आर्थिक, सामाजिक एवं व्यावसायिक क्षेत्र में होने वाले परिवर्तनों का समायोजन करने की व्यवस्था का नाम है।
• परिवर्तन प्रबन्ध का क्षेत्र अति व्यापक है। परिवर्तन प्रबन्ध एक नियोजित प्रक्रिया है।
• परिवर्तन की प्रकृति निम्नवत है-
प्रकृति का नियम तथा सतत् गामी प्रक्रिया
नियोजित परिवर्तन
मनुष्य द्वारा प्रतिरोध
संगठन के लक्ष्य पाने का उद्देश्य
अनिश्चितता का होना
परिवर्तन की गति एवं स्थिति में भिन्नता
परिवर्तन का वास्तविक होना
परिवर्तन एक खतरा भी है तथा नहीं भी
• परिवर्तन के तरीके अलग-अलग हाते हैं।
• परिवर्तन के कई प्रकार जैसे कार्य सम्बन्धी तकनीक सम्बन्धी व्यक्ति सम्बन्धी संरचना सम्बन्धी आदि हो सकते हैं।
• स्थानान्तरण व्यक्ति सम्बन्धी परिवर्तन है।
• संगठन संरचना में बदलाव सम्बन्धी परिवर्तन संरचना सम्बन्धी परिवर्तन होते हैं।
• प्रबन्ध पर परिवर्तनों का प्रभाव पड़ता है।
• परिवर्तन से प्रभावित होने वाले व्यक्तियों में परिवर्तन के प्रति अभिवृत्ति होती है तथा यह अभिवृत्ति होती है तथा यह अभिवृत्ति प्रतिक्रिया का स्रोत बनती है।
• प्रतिरोधकर्त्ता परिवर्तन से स्वयं को असुरक्षित अनुभव करता है।
• प्रतिरोध तथा विरोध में अन्तर होता है।
• प्रतिरोध संरक्षणकारी होता है।
• प्रतिरोध की प्रकृति इस प्रकार है-
• परिवर्तन तथा प्रतिरोध में निकट सम्बन्ध
• सभी प्रकार के परिवर्तनों का प्रतिरोध
• व्यापक क्षेत्र
• प्रतिरोध के कई कारण जैसे- व्यक्तिगत, आर्थिक, सामाजिक, समूह भावना को ठेस अनिश्चितता का वातावरण शक्ति एवं नियंत्रण का अत्यन्त केन्द्रीयकरण होना आदि हैं।
• परिवर्तन का कार्यान्वयन प्रभावी संदेशवाहन, नियोजन, सहभागिता आर्थिक सुरक्षा एवं गारण्टी, समय समायोजन, परम्परागत विचार में परिवर्तन आदि है।
परिवर्तनों के कारण जानना
परिवर्तनकारी शक्तियों का विश्लेषण करना
परिवर्तन की योजना का निर्माण करना
प्रतिरोध का निवारण करना
लोगों को परिवर्तन हेतु तैयार करना
परिवर्तनों को प्रभावी बनाना
परिवर्तनों का अनुगमन करना ।
• परिवर्तन के प्रतिरोध के प्रकार- तार्किक, मनोवैज्ञानिक तथा सामाजिक हो सकते हैं।
• सामान्य रूप से क्रियाओं के इंचार्ज द्वारा छोटे परिवर्तन किए जाते हैं।
• बड़े परिवर्तन उच्चस्तरीय प्रबन्ध द्वारा निम्नस्तरीय प्रबन्ध सोपान की सहायता से लागू किए जाते हैं।
• उच्च प्रबन्ध को परिवर्तन के पूर्व अत्यन्त समर्पित होना चाहिए।
• परिवर्तन की प्रक्रिया के व्यवस्थित नियोजन व क्रियान्वयन द्वारा सतत् आधार पर परिवर्तन के प्रतिरोध को नियंत्रित किया जा सकता है।
• कुर्ट लेविन ने परिवर्तन की प्रक्रिया में निम्नलिखित आयामों की पहचान की है- प्रस्तावित परिवर्तन के बारे में अधीनस्थों के संदेहों को दूर करना
• अधीनस्थों के सहयोग से परिवर्तन लागू करना,
• लागू किए गए परिवर्तन स्थायी रूप से बनाए रखना
• परिवर्तन तभी स्थायी होते हैं जब वांछित व्यवहार के लिए पर्याप्त क्रियाशीलता हो, तथा व्यक्तियों को परिवर्तन द्वारा लाभ महत्वपूर्ण अनुभव हो।
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